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झारखंड के ‘मिनी लंदन’ और 3000 साल पुराने मेगालिथ को मिलेगी वैश्विक पहचान, पर्यटन विभाग ने तैयार किया विकास खाका

Sanjana Kumari
5 नवंबर 2025 को 04:54 am बजे
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Jharkhand’s ‘Mini London’ and 3,000-Year-Old Megalith to Gain Global Tourism Identity, Says Tourism Department

रांची/हजारीबाग: झारखंड के ऐतिहासिक और पारिस्थितिक स्थलों को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए राज्य पर्यटन विभाग ने बड़ी पहल शुरू की है। विभाग ने हजारीबाग के पकरी बरवाडीह स्थित 3000 वर्ष पुराने मेगालिथ और रांची जिले के मैकलुस्कीगंज — जिसे ‘मिनी लंदन’ कहा जाता है — को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना तैयार की है।

पर्यटन मंत्री सुदिव्य कुमार ने दोनों स्थलों का निरीक्षण करने के बाद संबंधित विभागों को संरक्षण, सौंदर्यीकरण और पर्यटकों की सुविधाओं के विकास हेतु विस्तृत प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए हैं।

हजारीबाग का मेगालिथ: प्राचीन सभ्यता का साक्षी

बड़कागांव प्रखंड के पकरी बरवाडीह में स्थित यह मेगालिथ स्थल देश का एकमात्र 3000 साल पुराना ऐतिहासिक स्मारक माना जाता है। हालांकि, अब तक इसे विकास की मुख्यधारा में शामिल नहीं किया गया था।

मंत्री सुदिव्य कुमार ने कहा कि सरकार जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी पारदर्शिता और मुआवजे के साथ करेगी। इस स्थल को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने से यह न केवल पुरातात्विक अध्ययन का केंद्र बनेगा, बल्कि स्थानीय रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।

मैकलुस्कीगंज: औपनिवेशिक विरासत का केंद्र

रांची जिले का मैकलुस्कीगंज देश का एकमात्र एंग्लो-इंडियन गांव है, जिसे ‘मिनी लंदन’ कहा जाता है। यहां पुराने ब्रिटिश बंगले, गुरुद्वारा, मंदिर, मस्जिद, चर्च और नकटा हिल्स जैसी प्राकृतिक सुंदरता वाली जगहें हैं, जो पर्यटन के लिए आकर्षण का केंद्र बन सकती हैं।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और विधायक कल्पना सोरेन ने 21 सितंबर को मैकलुस्कीगंज का दौरा किया था। इसके बाद 11 अक्तूबर को मंत्री सुदिव्य कुमार ने दोनों स्थलों का निरीक्षण किया। इन स्थलों पर चर्चा राष्ट्रीय पर्यटन सम्मेलन, उदयपुर (15-16 अक्तूबर) में भी हुई थी।

खगोलीय घटना का केंद्र है मेगालिथ स्थल

हर साल 20-21 मार्च को यहां सूर्योदय की एक अद्भुत खगोलीय घटना देखी जाती है — जब सूरज की पहली किरण दो मेगालिथ पत्थरों के बीच से निकलती है। इस दृश्य को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। माना जाता है कि ये पत्थर आदिवासी समुदाय अपने दिवंगत पूर्वजों की स्मृति में गाड़ते थे।

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