रांची में एचईसी की भूमि की इसरो करेगा सैटेलाइट मैपिंग, अतिक्रमण और भूमि उपयोग का होगा सटीक मूल्यांकन

लंबे समय से विवादित एचईसी भूमि की वास्तविक स्थिति स्पष्ट करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को रांची स्थित एचईसी परिसर की सैटेलाइट आधारित डिजिटल मैपिंग का दायित्व सौंपा है।
इसरो अत्याधुनिक भू-स्थानिक (Geospatial) तकनीक का प्रयोग कर एचईसी की प्रत्येक इंच भूमि का उच्च-रिज़ॉल्यूशन डिजिटल नक्शा तैयार करेगा, जिसमें भूमि उपयोग, निर्माणाधीन संरचनाओं और अतिक्रमण की विस्तृत जानकारी दर्ज होगी।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, एचईसी की हजारों एकड़ भूमि में से लगभग 1000 एकड़ क्षेत्र पर अतिक्रमण बताया गया है।
उद्देश्य और कार्यप्रणाली
भारी उद्योग मंत्रालय ने इसरो को निर्देश दिया है कि मैपिंग 25 मीटर की सटीकता तक की जाए, ताकि सूक्ष्म स्तर पर भूमि की वास्तविक स्थिति ज्ञात हो सके।
भू-स्थानिक सूचना प्रणाली (GIS) के माध्यम से सड़कें, नाले, इमारतें, खाली भूखंड और अतिक्रमण वाले क्षेत्र स्पष्ट रूप से चिह्नित किए जाएंगे।
पिछले वर्ष भी इस तरह की पहल की तैयारी की गई थी, परंतु वह पूरी नहीं हो सकी थी। इस बार मंत्रालय ने स्पष्ट समय-सीमा निर्धारित करते हुए परियोजना को प्राथमिकता दी है।
आर्थिक संभावनाएँ
पूर्व में एचईसी प्रबंधन ने अपनी अव्यवहृत भूमि को लीज पर देकर लगभग 300 करोड़ रुपये की आय का अनुमान लगाया था, परंतु अस्पष्ट सीमाओं और विवादों के कारण योजना ठप हो गई।
अब इसरो की डिजिटल मैपिंग से भूमि का पुनर्मूल्यांकन संभव होगा, जिससे भविष्य में औद्योगिक परियोजनाओं और राजस्व सृजन के नए अवसर खुल सकते हैं।
अपेक्षित परिणाम
मैपिंग पूर्ण होने के बाद यह डेटा मंत्रालय को लीज, विकास या अतिक्रमण हटाने जैसी नीतिगत कार्रवाइयों के लिए सटीक आधार प्रदान करेगा।
इसके परिणामस्वरूप एचईसी की भूमि-संपत्ति का संरक्षित और पारदर्शी प्रबंधन सुनिश्चित हो सकेगा।
इसरो और भारी उद्योग मंत्रालय के बीच यह सहयोग प्रौद्योगिकी-संचालित प्रशासन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
यह पहल न केवल एचईसी की भूमि विवादों के समाधान का मार्ग प्रशस्त करेगी, बल्कि यह भी दर्शाएगी कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी किस प्रकार पारदर्शी शासन और संसाधन प्रबंधन का सशक्त उपकरण बन सकती है।
अन्य चित्र



