झारखंड हाईकोर्ट ने सरकार पर लगाया ₹50,000 का जुर्माना: बेवजह मुकदमेबाजी पर कड़ी टिप्पणी

झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को बेवजह और बार-बार की मुकदमेबाजी के लिए कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने कहा कि इस प्रकार की अपीलें न केवल “न्याय प्रक्रिया को बाधित करती हैं”, बल्कि “जनता के धन की बर्बादी” भी हैं।
मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठ ने राज्य सरकार की अपील खारिज करते हुए उस पर ₹50,000 का हर्जाना लगाया।
क्या है मामला
यह मामला अखिलेश प्रसाद नामक अधिकारी से संबंधित है, जो पहले बिहार सरकार में सहकारिता विस्तार पदाधिकारी थे और झारखंड गठन के बाद यहां की प्रशासनिक सेवा में शामिल हुए।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद राज्य सरकार ने उनकी पदस्थापना को 2013 से प्रभावी करने में देरी की।
अखिलेश ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें एकल पीठ ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया।
सरकार ने इस आदेश के खिलाफ अपील दायर की — जिसे खंडपीठ ने “बेमानी और बेवजह मुकदमेबाजी” बताते हुए खारिज कर दिया।
अदालत की सख्त टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश चौहान ने अपने आदेश में कहा —
“राज्य के अधिकारी यह भूल जाते हैं कि मुकदमेबाजी का खर्च सरकारी खजाने से आता है, उनकी जेब से नहीं। इसलिए वे बेवजह मुकदमे दायर कर देते हैं।”
अदालत ने निर्देश दिया कि ₹50,000 की राशि पहले अखिलेश प्रसाद को दी जाए और फिर छह माह के भीतर संबंधित अधिकारी से वसूली की जाए।
नीति लागू करने का आदेश
हाईकोर्ट ने झारखंड सरकार को 2011 की “मुकदमेबाजी नीति” को सख्ती से लागू करने का भी निर्देश दिया।
अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों की नियमित समीक्षा की जाए ताकि जनता के पैसे का दुरुपयोग न हो और न्यायिक संसाधनों पर अनावश्यक दबाव न पड़े।
अखिलेश प्रसाद की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ रंजन ने पैरवी की।
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