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झारखंड उपचुनाव के नतीजों ने भाजपा की संगठनात्मक चुनौतियों को उजागर किया, झामुमो ने की राजनीतिक पकड़ मजबूत

Sanjana Kumari
16 नवंबर 2025 को 08:40 am बजे
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Jharkhand By-poll Outcome Underscores BJP’s Organisational Challenges as JMM Consolidates Electoral Hold

झारखंड के घाटशिला विधानसभा उपचुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की जीत ने सत्ता पक्ष की मजबूती को दोहराया है, वहीं भाजपा की लगातार घटती चुनावी पकड़ को भी उजागर किया है। शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन के निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनके पुत्र सोमेश चंद्र सोरेन ने भाजपा प्रत्याशी बाबूलाल सोरेन को 38,601 मतों से पराजित किया।

2024 विधानसभा चुनाव में भाजपा को घाटशिला में 75,910 वोट मिले थे, जबकि उपचुनाव में यह संख्या घटकर 66,335 रह गई—अर्थात 9,575 वोटों की कमी।

2020 से 2025 तक उपचुनावों में भाजपा का कमजोर प्रदर्शन

पिछले पांच वर्षों में राज्य में हुए सात प्रमुख उपचुनावों में से केवल एक—रामगढ़ (2023)—भाजपा गठबंधन के पक्ष में गया। बाकी सभी JMM या कांग्रेस ने अपने पक्ष में बनाए रखा।

उपचुनाव परिणाम (2020–2025):

  • दुमका (2020) – झामुमो

  • बेरमो (2020) – कांग्रेस

  • मधुपुर (2021) – झामुमो

  • मंडर (2022) – कांग्रेस

  • रामगढ़ (2023) – आजसू

  • गांडेय (2024) – झामुमो

  • घाटशिला (2025) – झामुमो

यह पैटर्न भाजपा के घटते जनाधार का स्पष्ट संकेत है।

2019 के बाद लगातार गिरावट के संभावित कारण

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार भाजपा कई प्रमुख स्तरों पर चुनौतियों का सामना कर रही है:

  • स्थानीय नेतृत्व और आदिवासी क्षेत्रों में संवाद की कमी

  • बूथ स्तर पर कमजोर सक्रियता

  • कुर्मी और आदिवासी मतदाताओं के साथ संबंधों में दूरी

  • स्थानीय मुद्दों और पहचान आधारित राजनीति पर प्रभावी रणनीति का अभाव

2019 की हार के बाद से पार्टी राज्य स्तर पर कमजोर होती गई है।

नेतृत्व और संगठनात्मक ढांचे पर सवाल

भाजपा नेतृत्व, जिसमें प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी और संगठन महामंत्री कर्मवीर सिंह शामिल हैं, पर बढ़ती आलोचनाएं आ रही हैं। कई जिलों में संगठन निष्क्रिय बताया जा रहा है और आदिवासी नेतृत्व संरचना को मजबूत करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

पार्टी के भीतर इस बात पर सहमति बन रही है कि व्यापक संगठनात्मक पुनर्निर्माण आवश्यक है।

छत्तीसगढ़ मॉडल को झारखंड में दोहराने की चर्चा

कुछ विश्लेषकों का मत है कि भाजपा झारखंड में भी छत्तीसगढ़ मॉडल अपनाकर पुनर्गठन कर सकती है। 2018 विधानसभा हार के बाद वहां पार्टी ने व्यापक संगठनात्मक बदलाव किए थे और 2019 व 2023 में उल्लेखनीय वापसी दर्ज की थी।

इसी तरह के ढांचे की झारखंड में भी जरूरत देखी जा रही है।

घाटशिला का संदेश—समय सीमित है

अगले तीन वर्षों तक किसी बड़े चुनाव के न होने से भाजपा के पास पुनर्निर्माण का अवसर है। किंतु घाटशिला का परिणाम इस बात का संकेत है कि यदि समय रहते सुधार नहीं किए गए, तो राज्य में पार्टी की पुनर्प्राप्ति और कठिन हो सकती है।

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