झारखंड ट्रांसमिशन निगम का ब्लू प्रिंट: 2034-35 तक बिजली की जरूरत पहुँचेगी 6,800 मेगावाट

झारखंड में बिजली की भविष्य की मांग को ध्यान में रखते हुए झारखंड ट्रांसमिशन निगम और केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) ने एक ब्लू-प्रिंट तैयार किया है। इस योजना के अनुसार, 2034-35 तक राज्य में बिजली की पीक मांग लगभग 6,800 मेगावाट तक पहुँच सकती है।
पृष्ठभूमि और मांग का अनुमान
केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण ने झारखंड के इंट्रा-स्टेट ट्रांसमिशन सिस्टम की संसाधन पर्याप्तता की योजना को मंजूरी दी है। यह एक ऐसा रोडमैप है, जो ग्रिड की विश्वसनीयता बढ़ाने, ट्रांसमिशन इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाने और भविष्य की बिजली जरूरतों को पहले से ही पूरा करने का लक्ष्य रखता है।
एक्शन-प्लान में यह अनुमान लगाया गया है कि झारखंड की बिजली पीक मांग वित्त वर्ष 2025-26 में 3,576 मेगावाट, 2026-27 में 3,808 मेगावाट, और आगे बढ़ते हुए 2030-31 तक लगभग 4,800 मेगावाट तक पहुंच जाएगी। इसके बाद, 2034-35 में यह मांग 6,800 मेगावाट तक बढ़ने का प्रक्षेपण है।
वर्तमान संसाधन स्थिति और योजनाबद्ध वृद्धि
वर्तमान में झारखंड की विद्युत उत्पादन और आपूर्ति संरचना को भी मजबूत किया जा रहा है। राज्य की ऊर्जा नीति और नियामक ढाँचे में, ट्रांसमिशन स्तर पर सुधार की रणनीति बनाई जा रही है ताकि इस भविष्य की मांग को पूरा किया जा सके।
इस ब्लू-प्रिंट में बताया गया है कि 2030 तक राज्य में कुल आपूर्ति लगभग 6,230 मेगावाट तक पहुंच सकती है, जिसमें विभिन्न स्रोतों से उत्पादन और ट्रांसमिशन क्षमता का विस्तार शामिल है।
क्यों यह महत्व रखता है
ग्रिड विश्वसनीयता बढ़ेगी: बेहतर ट्रांसमिशन नेटवर्क से बिजली की सप्लाई बाधाओं में कमी आएगी।
लागत अनुकूलन: लंबे समय में कुशल ट्रांसमिशन नेटवर्क उपभोक्ताओं को सस्ती और अधिक भरोसेमंद बिजली उपलब्ध कराने में मदद करेगा।
नवीकरणीय ऊर्जा को समायोजित करने की क्षमता: जैसे-जैसे झारखंड में अक्षय ऊर्जा का हिस्सा बढ़ेगा, एक मजबूत ट्रांसमिशन ढांचा अभिन्न होगा।
भविष्य की आर्थिक वृद्धि की तैयारी: उद्योगों और घरेलू क्षेत्रों में बिजली की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए यह योजना राज्य के आर्थिक विकास के लिए जरूरी है।
हालांकि यह ब्लू-प्रिंट महत्वाकांक्षी है, लेकिन इसे लागू करने के लिए कुछ चुनौतियाँ हैं:
बड़ी पूंजी निवेश की आवश्यकता होगी — ट्रांसमिशन लाइनों, सबस्टेशनों और अन्य बुनियादी ढांचे में।
भूमि अधिग्रहण, अनुमोदन-प्रक्रियाओं और पर्यावरणीय मंजूरी कठिनाइयाँ पैदा कर सकती हैं।
योजना में अनुमानित मांग यदि वास्तविकता से कम रही, तो अतिरिक्त ट्रांसमिशन क्षमता अंडर-यूज हो सकती है।
झारखंड के ऊर्जा भविष्य के लिए यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है। ट्रांसमिशन निगम और CEA की यह साझा दृष्टि न केवल बिजली आपूर्ति में सुधार लाएगी, बल्कि राज्य को ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में भी मजबूत बनाएगी। यह ब्लू-प्रिंट यदि सही समय पर और प्रभावी तरीके से लागू हो जाए, तो आने वाले पल में झारखंड में बिजली की कमी और सप्लाई अस्थिरता की चुनौतियाँ काफी हद तक कम हो सकती हैं।
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