दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में शामिल भारत का पासपोर्ट फिसला, अब सिर्फ 57 देशों तक वीज़ा-फ्री पहुंच

नई दिल्ली:
तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होने के बावजूद भारत का पासपोर्ट 2025 की वैश्विक रैंकिंग में पांच पायदान नीचे आ गया है। हेनली पासपोर्ट इंडेक्स 2025 के अनुसार, भारत अब 85वें स्थान पर है - जबकि 2024 में यह 80वें स्थान पर था। इसका सीधा मतलब है कि भारतीय नागरिक अब सिर्फ 57 देशों में बिना वीज़ा या वीज़ा-ऑन-अराइवल यात्रा कर सकते हैं। पिछले साल यह संख्या 62 देशों की थी।
यह गिरावट इसलिए भी चौंकाने वाली है क्योंकि भारत इस समय दुनिया की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। वहीं, रवांडा (78वां), घाना (74वां) और अज़रबैजान (72वां) जैसे छोटे देश भारत से आगे निकल गए हैं।
सिंगापुर सबसे ऊपर, भारत मॉरिटानिया के बराबर
इंडेक्स में सिंगापुर ने फिर बाज़ी मारी है — उसके नागरिक 193 देशों में वीज़ा-फ्री यात्रा कर सकते हैं। इसके बाद दक्षिण कोरिया (190 देश) और जापान (189 देश) का स्थान है। इसके मुकाबले भारतीय पासपोर्ट धारक सिर्फ 57 देशों तक ही बिना वीज़ा यात्रा कर सकते हैं, जो अफ्रीकी देश मॉरिटानिया के बराबर है।
पासपोर्ट रैंकिंग का असली अर्थ
पासपोर्ट इंडेक्स केवल यात्रा की आसानी नहीं, बल्कि किसी देश की सॉफ्ट पावर और कूटनीतिक प्रभाव का पैमाना भी माना जाता है। यह रैंकिंग इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) के डाटा पर आधारित होती है और दिखाती है कि किसी देश के नागरिक कितने देशों में बिना वीज़ा प्रवेश पा सकते हैं।
मजबूत पासपोर्ट वाले देशों के नागरिकों को न केवल आसान यात्रा बल्कि बेहतर व्यापारिक अवसर और वैश्विक गतिशीलता भी मिलती है, जबकि कमजोर पासपोर्ट वालों को महंगी फीस, लंबी प्रक्रियाओं और अनिश्चित इंतज़ार का सामना करना पड़ता है।
वीज़ा साझेदारी की दौड़ में भारत पिछड़ा
2014 में भारतीय पासपोर्ट धारकों को 52 देशों में वीज़ा-फ्री प्रवेश की सुविधा थी, जो 2024 तक बढ़कर 62 देशों तक पहुंची। लेकिन 2025 में यह घटकर 57 देशों पर सिमट गई।
वहीं, चीन ने इस दौरान उल्लेखनीय सुधार किया — 2015 में 94वें स्थान से बढ़कर अब 60वें स्थान पर पहुंच गया, क्योंकि उसने कई देशों के साथ नए वीज़ा समझौते किए।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की धीमी कूटनीतिक प्रगति और सीमित वीज़ा समझौते इस गिरावट की वजह बने हैं।
गिरावट के प्रमुख कारण
वीज़ा नीतियों में बढ़ती सख्ती
ओवरस्टे और फर्जी वीज़ा आवेदनों की समस्या
इमिग्रेशन नियमों को लेकर पश्चिमी देशों की सतर्कता
पूर्व राजनयिक अचल मल्होत्रा के अनुसार, “1970 के दशक में भारतीयों को कई पश्चिमी देशों में बिना वीज़ा जाने की अनुमति थी, लेकिन 1980 के दशक में आंतरिक अस्थिरता और आव्रजन दुरुपयोग के मामलों ने भारत की विश्वसनीयता को प्रभावित किया।”
यात्रियों पर बढ़ा बोझ: समय और पैसा दोनों
भारतीय यात्रियों को अब किसी वीज़ा के लिए औसतन 15 से 30 दिन का इंतज़ार करना पड़ता है और इसकी लागत ₹5,000 से ₹10,000 तक होती है। कई मामलों में रिजेक्शन दर भी बढ़ी है।
एक ट्रैवल ब्लॉगर ने हाल में कहा, “अब यूरोप जाना सपने जैसा लगने लगा है — कागजी प्रक्रिया, इंटरव्यू और लंबा इंतजार थका देता है।”
सरकार की कोशिशें: ई-पासपोर्ट योजना
भारत सरकार ने हाल ही में ई-पासपोर्ट योजना शुरू की है, जिसमें एक एम्बेडेड चिप नागरिक की बायोमेट्रिक जानकारी रखती है। इससे पासपोर्ट धोखाधड़ी पर रोक और सुरक्षा में सुधार की उम्मीद है।
हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि केवल तकनीक नहीं, बल्कि कूटनीतिक रिश्ते और पारस्परिक भरोसे के समझौते ही भारत के पासपोर्ट की ताकत को वाकई बढ़ा सकते हैं।
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