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झारखंड बार काउंसिल चुनाव 15 मार्च तक संपन्न होंगे; सुप्रीम कोर्ट ने पांच चरणों में मतदान की मंजूरी दी

Sanjana Kumari
19 नवंबर 2025 को 03:26 am बजे
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Supreme Court Clears Five-Phase Schedule for Bar Council Polls; Jharkhand Elections to Conclude by March 15

प्रीम कोर्ट ने पांच चरणों में चुनाव कराने की अनुमति दी

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य बार काउंसिल चुनावों के लिए पांच चरणों में मतदान कराने की अनुमति देते हुए निर्देश दिया है कि झारखंड बार काउंसिल का चुनाव 15 मार्च तक पूरा कर लिया जाए। पहला चरण 31 जनवरी 2026 तक संपन्न होगा, जबकि झारखंड तीसरे चरण में मतदान कराएगा।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अनुरोध पर कोर्ट ने यह चरणबद्ध कार्यक्रम मंजूर किया और कहा कि सभी राज्यों के चुनाव 30 अप्रैल 2026 तक हर हाल में पूरे कर लिए जाएं।

फर्जी डिग्री पर सख्ती, लेकिन चुनाव नहीं रुकेगा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वकीलों की कानून की डिग्रियों का सत्यापन अनिवार्य है, क्योंकि फर्जी डिग्रीधारकों के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।

इसके बावजूद चुनाव प्रक्रिया बाधित नहीं होगी। जिन वकीलों का सत्यापन लंबित है, वे प्रोविजनल वोटिंग कर सकेंगे। यदि बाद में डिग्री फर्जी पाई जाती है, तो उन्हें चुनाव प्रक्रिया से बाहर कर दिया जाएगा।

सभी विश्वविद्यालयों को सत्यापन के लिए विशेष टीम बनाकर एक सप्ताह में रिपोर्ट देने का निर्देश दिया गया है।

तदर्थ समिति कर रही है काउंसिल का संचालन

झारखंड बार काउंसिल का कार्यकाल 28 जुलाई 2023 को समाप्त हो गया था। सत्यापन प्रक्रिया अधूरी रहने के कारण BCI के निर्देश पर यहां तदर्थ समिति ही संचालन कर रही है।

चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने क्षेत्रीय स्तर पर हाई पावर इलेक्शन मॉनिटरिंग कमेटियां और राष्ट्रीय स्तर पर एक हाई पावर सुपरवाइजरी कमेटी गठित की है, जिसका नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश करेंगे।

वन मैन, वन पोस्ट’ नियम को लेकर स्थिति अब भी अस्पष्ट

यह अभी स्पष्ट नहीं है कि जिला बार संघों और हाईकोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन के पदाधिकारी चुनाव लड़ सकेंगे या नहीं।

BCI ने 2016 में जारी आदेश में एक साथ दो पदों पर रहने को प्रतिबंधित किया था। कुछ राज्यों में यह नियम लागू है, लेकिन झारखंड में स्थिति स्पष्ट नहीं है।

संभावना है कि चुनाव कार्यक्रम के साथ BCI इस पर स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करे। इस नियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई है।

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